छत्तीसगढ़ एवं पडोसी राज्यों के मानव विकास सूचकांक का बदलता स्वरूप (जनगणना 2001 से
2011)
डाॅ. बी.एल. सोनेकर1, रश्मि पाण्डेय2
1एसोसियट प्रोफेसर, अर्थशास्त्र अध्ययनशाला, पं.रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय, रायपुर (छ.ग.)
2सहायक प्राध्यापक (अर्थशास्त्र), षासकीय महाविद्यालय षंकरगढ़, जिला-बलरामपुर-रामानुजगंज (छ.ग.)
ब्वततमेचवदकपदह ।नजीवत म्.उंपसरू
सारांश
इस शोध पत्र में छ.ग. एवं उसके पड़ोसी राज्यों के साथ मानव विकास सूचकांक के बदलते स्वरूप का विगत दो जनगणना के बीच अध्ययन किया गया है। यह शोध पत्र यह बताता है कि छ.ग. एवं उसके पड़ोसी राज्य में जनगणना वर्ष 2001 की तुलना में जनगणना वर्ष 2011 में किस प्रकार आय सूचकांक, एवं स्वास्थ सूचकांक एवं षिक्षा सूचकांक के स्वरूप में परिर्वतन हुआ हैं। तथा यह भी बतलाता हैं कि इन तीनों सूचकांक के आधार पर निर्मित मानव विकास सूचकांक के स्वरूप में किस प्रकार परिवर्तन हुआ है यह पत्र यह भी बतलाता है कि छ.ग. जहाॅ जनगणना 2001 में अपने पड़ोसी राज्यों की तुलना में मानव विकास सूचकांक में चैथे स्थान पर था वह जनगणना 2011 में तीसरे स्थान पर पहुॅच गया हैं। अतः स्पष्ट है कि छत्तीसगढ़ राज्य अपने पड़ोसी राज्यों में महाराष्ट्र एवं आध्रप्रदेष राज्य के पीछे है जबकि अन्य पड़ोसी राज्य उड़ीसा आध्रप्रदेष, उत्तरप्रदेष, मध्यप्रदेष की तुलना अच्छी हैं।
प्रस्तावना
मानव विकास सूचकांक की अवधारणा का प्रतिपादन वर्ष 1990 में संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम ;न्छक्च्द्ध से सम्बद्ध पाकिस्तानी अर्थशास्त्री महबूब-उल-हक तथा अन्य सहयोगी अर्थशास्त्री ए.के.सेन तथा सिंगर हंस ने किया।
मानव विकास सूचकांक स्वास्थ्य, शिक्षा व आय के स्तर के आधार पर तैयार किया जाने वाला संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम ;टछक्च्द्ध का सूचकांक हैं। भ्क्प् का अधिकतम मूल्य 1 तथा न्यूनतम मूल्य 0 होता है।
मानव विकास आयाम या घटकों की रचना तीन सूचकांकों के आधार के आधार पर होती हैं
1.
जीवन प्रत्याशा सूचकांक
2.
शिक्षा सूचकांक
3.
जीवन निर्वाह का स्तर, जिसमें क्रय-शक्ति समायोजित प्रति व्यक्ति आय (डाॅलर) में व्यक्त करते है।
ये तीनों घटकों जो अलग अलग तीनों चरों पर आधारित होते हैं, सभी मिलकर मानव विकास सूचकांक का निर्माण करते हैं। इस प्रकार
मानव विकास सूचकांक
=
इन घटकों के लिए स्वास्थ्य स्तर का आकलन जीवन प्रत्याशा के द्वारा, शैक्षणिक स्तर का प्रौढ साक्षरता और प्राथमिक, द्वितीयक एवं तृतीयक स्तर पंजीकरण के आधार पर तथा रहन-सहन स्तर का आकलन आय के स्तर एवं क्रयशक्ति क्षमता के आधार पर किया जाता हैं।
अध्ययन का उद्देश्यः-
1.
छत्तीसगढ़ के पड़ोसी राज्यों के साथ छत्तीसगढ़ के मानव विकास सूचकांक का तुलनात्मक अध्ययन करना।
2.
भारत के साथ छत्तीसगढ़ के मानव विकास सूचकांक का तुलनात्मक अध्ययन करना।
संमको का एकत्रीकरणः-
प्रस्तुत अध्ययन द्वितीयक संमको पर आधारित हैं समको का संकलन विभिन्न सरकारी विभागों द्वारा प्रकाशित रिर्पोट, यू. एन. डी पी. रिर्पोट योजना आयोग की रिर्पोट छत्तीसगढ़ सरकार रिर्पोट आर्थिक समीक्षा एवं ग्रंथालय में उपलब्ध विविध साहित्य से किया गया हैं।
अध्ययन की अवधि:-
जनगणना 2001 एवं 2011
अध्ययन की विधिः-
प्रस्तुत अध्ययन हेतु वर्णात्मक एवं विश्लेषणात्मक अध्ययन विधि का प्रयोग किया गया हैं।
भारत एवं पडोसी राज्यों के साथ छत्तीसगढ़ के मानव विकास सूचकांक का तुलनात्मक अध्ययनः-
01 नवम्बर 2000 में मध्यप्रदेश पुर्नगठन अधिनियम 2000 के द्वारा भारत के हृदय मध्यप्रदेश से अलग छबीसवाॅ राज्य छत्तीसगढ़ बना। नवोदित राज्य छत्तीसगढ़ 44 वर्षांे तक मध्यप्रदेश का अंग रहा। छत्तीसगढ़ राज्य भारत के छः राज्यों की सीमा को छूती हैं इसके उत्तरपूर्व में झारखण्ड, दक्षिण में आध्रप्रदेश, दक्षिण पश्चिम में महाराष्ट्र एवं पश्चिम में मध्यप्रदेश हैं। छत्तीसगढ़ की सर्वाधिक लम्बी सीमा पूर्व में उड़ीसा राज्य को छूती हैं और सबसे कम उत्तर में उत्तरप्रदेश को ।़
अतः छत्तीसगढ़ राज्य एक भू अविष्ठत राज्य है जिसकी सीमा न तो किसी दूसरे देश और न ही किसी समुद्रीय तट को स्पर्श करती हैं।
हम जानते हैं कि मानव विकास सूचक का परिकलन करने से पूर्व इन तीनों आयामों के अलग-अलग सूचक तैयार किये जाते हैं इस उद्देश्य के लिए अधिकतम एवं न्यूनतम मूल्यों का प्रत्येक सूचक के लिए चुनाव किया जाता हैं।
प्रत्येक आयाम के निष्पादन को 0 और 1 के बीच मूल्य रूप में इस फार्मूले के प्रयोग से प्राप्त किया जाता हैं
आयाम सूचक त्र
मानवीय विकास सूचक इन तीन आयाम सूचकों का साधारण औसत में हैं।
आय सूचकांक
प्रस्तुत तालिका में जनगणना 2001 से
2011 में स्थिर कीमतों पर प्रति व्यक्ति आय के आधार पर भारत एवं पडोसी राज्यों के साथ छत्तीसगढ़ के आय सूचकांकों का तुलनात्मक अध्ययन किया गया हैं।
तलिका से ज्ञात होता हैं कि जनगणना 2001 की तुलना में छत्तीसगढ़ के सभी राज्यों के आय सूचकांक में सुधार हुआ है। जनगणना 2001 में महाराष्ट्र राज्य का आय सूचकांक सबसे अधिक है उसके बाद क्रमशः आध्रप्रदेश, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, ओडिशा झारखण्ड एवं सबसे कम उत्तरप्रदेश हैं।
लेकिन 2011 की जनगणना में यह क्रम परिवर्तित होकर सबसे अधिक महाराष्ट्र आध्रप्रदेश, छत्तीसगढ़ झारखण्ड, ओडिशा, मध्यप्रदेश, एवं सबसे कम उत्तरप्रदेश का हैं। यदि राष्ट्रीय औसत से तुलना करें तो छत्तीसगढ़ का आय सूचकांक जनगणना 2001 एवं 2011 दोंनों ही वर्षों में राष्ट्रीय औसत से कम हैं।
स्वास्थ सूचकांक
नीचे तालिका में जनगणना वर्ष 2001 एवं 2011 में जीवन प्रत्याशा के आधार पर भारत एवं पड़ोसी राज्यों के साथ छत्तीसगढ़ के स्वास्थ सूचकांक तुलनात्मक अध्ययन किया गया ।
तालिका से ज्ञात होता है कि जनगणना 2001 में छत्तीसगढ़ एवं पडोसी राज्यों में सबसे अधिक स्वास्थ्य सूचकांक महाराष्ट्र राज्य का है जबकि सबसे कम झारखण्ड, मध्यप्रदेश एवं छत्तीसगढ़ का है जबकि जनगणना वर्ष 2011 में सबसे अधिक स्वास्थ सूचकांक महाराष्ट्र राज्य का तथा सबसे कम मध्यप्रदेश राज्य का हैं।
यदि राष्ट्रीय औसत से तुलना करें तो छत्तीसगढ़ का स्वास्थ्य सूचकांक जनगणना 2001 एवं 2011 दोनो ही वर्षाें में राष्ट्रीय औसत से कम हैं।
;ठद्ध शिक्षा सूचकांक
नीचे तालिका में जनगणना वर्ष 2001 एवं 2011 में के आधार पर भारत एवं पडोसी राज्यों के साथ छत्तीसगढ़ के शिक्षा सूचकांक का तुलनात्मक अध्ययन किया गया हैं।
शिक्षा सूचकांक को बालिग साक्षरता दर एवं कुल नामांकन अनुपात के योग के आधार पर निकाला गया हैं
सूत्र रूप मे देखे तो
पण्
प्रथम चरण
बालिग साक्षरता सूचकांक =
पपण्
द्वितीय चरण
कुल नामांकन अनुपात=
पपपण् तृ्तीय चरण
साक्षरता का सूचकांक = 2/3 बालिग साक्षरता सूचकांक $1/3 कुल नामांकन अनुपात सूचकांक
तालिका से ज्ञात होता है कि जनगणना वर्ष 2001 में छत्तीसगढ़ के पडोसी राज्यों में सबसे अधिक साक्षतरता सूचकांक महाराष्ट्र राज्य का हैं उसके बाद क्रमशः छत्तीसगढ़ मध्यप्रदेश आधप्रदेश, उड़ीसा उत्तरप्रदेश एवं सबसे कम झारखण्ड राज्य का हैं। जबकि 2011 में यह कम परिवर्तित होकर सबसे अधिक साक्षरता सूचकांक महाराष्ट्र राज्य का उसके बाद क्रमशः मध्यप्रदेश, उडीसा, छत्तीसगढ़ आध्रप्रदेश, उत्तरप्रदेश तथा सबसे कम झारखण्ड राज्य की है। यदि राष्ट्रीय औसत से तुलना करें छत्तीसगढ़ का साक्षरता सूचकांक राष्ट्रीय औसत से कम हैं।
तालिका से ज्ञात होता है कि छत्तीसगढ़ के पड़ोसी राज्यों में जनगणना वर्ष 2001 में सबसे अधिक मानव विकास सूचकांक महाराष्ट्र राज्य का हैं उसके बाद क्रमशः आंध्रप्रदेश, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, उड़ीसा, उत्तरप्रदेश, एवं सबसे कम झारखण्ड राज्य का हैं। जबकि यह क्रम जनगणना वर्ष 2011 में परिवर्तित होकर सबसे अधिक मानव विकास सूचकांक महाराष्ट्र राज्य का है उसके बाद क्रमशः आध्रप्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखण्ड, उड़ीसा, मध्यप्रदेश और सबसे कम उत्तरप्रदेश राज्य का है।
यदि राष्ट्रीय औसत की तुलना में तो छत्तीसगढ़ का मानव विकास सूचकांक में सुधार दोनों ही जनगणना वर्षाें में राष्ट्रीय औसत से कम हैं।
निष्कर्ष
अध्ययन में पाया हैं छत्तीसगढ़ के मानव विकास सूचकांक में सुधार हुआ परन्तु यह आज भी अपने पड़ोसी राज्य महाराष्ट्र एवं आध्रप्रदेश से पीछे है जबकि अन्य पडोसी राज्येंा उड़ीसा, आध्रप्रदेश उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश की तुलना में अच्छी स्थिति में पाया गया हैं।
राष्ट्रीय औसत से तुलना में छत्तीसगढ़ का मानव विकास सूचकांक दोनों ही जनगणना वर्षों में राष्ट्रीय औसत से कम हैं। अतः इसमें सुधार की आवश्यकता हैं।
सुझाव
;1द्ध
छत्तीसगढ़़ में नागरिकों के लिए रोजगार की व्यवस्था, करनी चाहिए क्योंकि जब उन्हें वेतन एवं रोजगार मिलता है, तो वह धीरेधीरे शिक्षा, स्वास्थ्य और अपनी सामाजिक स्थिति को सुधारने का प्रयास करते है। अतः सरकार को ऐसे योजनाएँ या रोजगार पुरूष करना चाहिए जिसमें अधिक से अधिक श्रम लगे।
;2द्ध
छत्तीसगढ़़ में बहुत ही आय असमानता पाई जाती है। अतः सरकार को आय एवं रोजगार के वितरण में समानता लानी चाहिए ताकि पिछड़े आदिवासी क्षेत्रों का भी तेजी से विकास हो सके।
;3द्ध
छत्तीसगढ़़ सरकार को, रोजगार बढ़ाने के भौतिक आधारिक संसाधनों, वित्तीय संसाधन आदि प्रदान करना चाहिए ताकि आर्थिक अवसर अवरूद्ध न हो।
;4द्ध
सरकार को चाहिए कि वह नागरिकों के लिए शिक्षा, उनके प्रशिक्षण एवं स्वास्थ्य सुविधाओं पर भारी मात्रा में निवेश करे ताकि छत्तीसगढ़़ उच्च मानव सूचकांक की श्रेणी में आ सके। केरल इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है।
;5द्ध
पुरूषों और महिलाओं को विकास का बराबर अवसर प्रदान किया जाना चाहिए। ऐसा माना जाता है यदि महिलाओं को पर्याप्त सुविधाएॅं दी जाए तो वह परिवार के शिक्षा, जीवन स्तर सुधार एवं मानव विकास में अपना महत्वपूर्ण योगदान देती है।
;6द्ध
छत्तीसगढ़़ सरकार की जनसंख्या नीति में सुधार कर ऐसी नीति बनानी चाहिए जिससे शिक्षा एवं स्वास्थ्य सुविधाओं का तेजी से विकास हो और मृत्युुदर में कमी, जीवन प्रत्याषा में वृद्धि एवं जन्मदर में कमी लाया जा सके।
परंतु जैसा महबूब उल हक ने कहा है, इन दिशाओं में परिवर्तन छोटेमोटे नहीं है, अपितु मौलिक परिवर्तन है। इस राह में कठिनाईयाँ बहुत है और काम चुनौतीपूर्ण है। परंतु यह प्रयास अपने आप में लाभकारी भी है। हमें इस बात को नहीं भूलना चाहिए कि आरंभिक चरणों में राष्ट्रीय आय खातों के निर्माण में भी बहुतसी कठिनाईयों का सामना करना पड़ा था। इसी प्रकार जब हम मानव विकास सूचकों को शामिल करने की आरंभिक कठिनाईयों पर विजय पा लेंगे तब मानव विकास सूचकांक का निर्माण भी एक आम बात हो जाएगी।
संदर्भ ग्रंथ सूची
1ण्
मेहरोत्रा, एस.एन. अरबनाइजेषन इन मध्यप्रदेष द ज्योग्राफीकल रिव्यू आॅफ इण्डिया वाॅल, 23.1961, पेज न. 29.48
2ण्
बनर्जी, बी. के.: ;1969द्ध सम ऐस्पेक्ट आॅफ रूरल पाॅपुलेषन मध्यप्रदेष द ज्योग्राफिकल आऊट लुक, वाल्यूम 5ए पेज नं. 29.43
3ण्
भट्टाचार्य, ए: पाॅपुलेषन ज्योग्राफी आॅफ इण्डिया श्री पब्लिषिंग हाऊस, न्यू दिल्ली, 1978
4ण्
दूबे आर.एम. ;1981द्ध पाॅपूलेषन डायनिमिक्स इन इण्डिया विथ रिफरेन्स टू उत्तरप्रदेष, वध पब्लिकेषन इलाहाबाद।
5ण्
चैधरी, तुलसीकान्त: ;1982द्ध डेमोग्राफिक ट्रेन्ड इन आसाम व्ही. आर. पब्लिषिंग हाऊस दिल्ली 1982ए पेज नं. 921.971
6ण्
अली अहमद 1995 क्वालिटी आॅफ इन नार्थ परगना वेस्ट बंगाल; ए जियोग्राफिकल प्रेसपेक्टीव स्पेक्ट्रेक्ट गअपप इंडियन जियोग्राफी कांग्रेस एन.ए.जी.आई., दिसंबर
7ण्
इंदिरा हिरबे, दर्षनी महादेवी ;1996द्ध: क्रिटिक आॅफ जी. डी. आई टूर्वडस एन एलटरनेटिव, इकोनाॅमिक एण्ड पाॅलिटिकल विकली।
8ण्
रे. अमिताभ ;2000द्ध मानव विकास रिपोर्ट एक नजर योजना जुलाई 1
9ण्
पांडे, बी.एन. ;2001द्ध: बिहार भागलपुर जिले के खैरनार जनजाति में भू्रण एवं षिषु मृत्युुदर, आदिवासी स्वास्थ्य पत्रिका, जनवरी, अंक 11
10ण्
वाजपेयी डाॅ. शारदा, छत्तीसगढ़ में मानव संसाधन का मात्रात्मक एवं गुणात्मक विष्लेशण, शोध, उपक्रम, अंक 30 अक्टूबर 2010 छत्तीसगढ़ शोध संस्थान, 370 सुंदरनगर रायपुर (छत्तीसगढ़़)
11ण्
मानव संसाधन विकास मंत्रालय, वार्षिक रिपोर्ट 2000.10, नई दिल्ली, 2010
12ण्
प्रो. लाल एस.एन., डाॅ. एस के. लाल - भारतीय अर्थव्यवस्थ सर्वेक्षण तथा विष्लेेषण, पृृश्ठ-1.3
13ण्
भारत झुनझुनवाला-भारतीय अर्थव्यवस्था, समीक्षात्मक अध्ययन
14ण्
राज कपिला, उमा कपिला - भारतीय अर्थनीति
15ण्
डाॅ. ओ.पी. शर्मा - भारतीय अर्थव्यवस्था: नई शताब्दी में
1.
Desai, M. (1991). Human development:
concept and measurement, European Economic Review 35.
2.
Dasgupta, P. and Weale, M. (1992). On
measuring the quality of life, World Development 20(1).
3.
Rizvi, Firdaus Fatima (2006) Social
Inequality and Human Development, in Pant, S.K. (ed.), Human Development:
Concept and Issues in the context of Globalisation New Delhi: Rawat
Publications.
4.
Government of India (2010): Education in
India: 2007-08 Participation and Expenditure, Report No. 532 (64/25.2/1),
National Sample Survey Organization, Ministry of Statistics and Programme
Implementation, New Delhi.
5.
Human Devolvement Index of India 2001-2011
6.
Census Of India 2001-2011
Received
on 15.04.2017 Modified on 28.05.2017
Accepted
on 14.06.2017 © A&V Publication all right reserved
Int.
J. Ad. Social Sciences. 2017; 5(2):99-104.